उतराखंडशिक्षा

पुरकल यूथ डेवलपमेंट सोसाइटी की मनमानी पर होगी जांच

महिला आयोग ने शिक्षा सचिव को भेजा पत्र

देहरादून। पुरकल यूथ डेवलपमेंट सोसाइटी ने एक समय में जो मान और सम्मान कमाया, उस पर कुछ पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली बट्टा लगा रही है। जो सोसाइटी देहरादून के पुरकुल क्षेत्र में गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए लर्निंग अकादमी चलाती है, वहां ऐसा लगता है कि मानवीय मूल्य क्षीण होने लगे हैं। यह संस्था एक तरफ गरीब बच्चों के उत्थान के कार्यों के लिए देश-विदेश से सीएसआर (कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) और फॉरेन कंट्रीब्यूशन रगुलेशन एक्ट 2010 के तहत धनराशि प्राप्त करती है और दूसरी तरफ इस संस्थान में सालों से सेवा करने वाली शिक्षिकाओं को एक झटके में अकारण ही निकाल दिया जाता है। वह भी ऐसी स्थिति में जब एक शिक्षिका मातृत्व अवकाश पर होती है। अवकाश समाप्त हो जाने के बाद उसके लिए सोसाइटी के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। आर्थिक और मानसिक शोषण के इस मामले में उत्तराखंड महिला आयोग ने कड़ा रुख अपनाया है। सोसाइटी से निकाली गई शिक्षिका कंचन की शिकायत पर आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने दोनों पक्षों की बात सुनी। पीड़ित शिक्षिका कंचन ध्यानी ने कहा कि उन्होंने 23 जुलाई 2024 से 14 नवंबर 2024 तक मातृत्व अवकाश लिया था। चूंकि बच्चे को देखभाल की अतिरिक्त आवश्यकता थी, इसलिए कंचन ने स्कूल प्रशासन से आग्रह किया था कि अवकाश को 8 जनवरी तक बढ़ाया जाए। उन्हें 9 जनवरी को ज्वाइन करना था। लेकिन, सोसाइटी के सचिव अनूप सेठ ने अकारण ही शिक्षिका का अवकाश अप्रैल 2025 तक बढ़ा दिया। कंचन ने आयोग को बताया कि वह सोसाइटी की लर्निंग अकादमी में कक्षा 8 और 9 के बच्चों को पढ़ाती थीं। इससे पहले कि कंचन बढ़ाए गए अवकाश के बाद दोबारा स्कूल में ज्वाइन करतीं, उन्हें ईमेल के माध्यम से सूचित किया गया कि अब कक्षा 4 के छात्रों को भी पढ़ाना होगा। इस पर कंचन ने तर्कसंगत आपत्ति की तो सचिव अनूप सेठ ने 8 अप्रैल को कॉन्फ्रेंस हॉल में बुलाया और और एचआर की उपस्थिति में स्कूल से निकालने की धमकी दी।
इसके बाद उन्हें वापस ज्वाइन नहीं करने दिया गया। लिहाजा, कंचन ने व्यथित होकर महिला आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा। आयोग की अध्यक्ष ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सचिव अनूप सेठ को कहा कि वह शिक्षिका कंचन को स्कूल में पुनः नियुक्ति प्रदान करें। हालांकि, सचिव नियुक्ति देने को तैयार नहीं हैं। प्रकरण की गंभीरता और मातृत्व अवकाश अधिनियम 1961 की अनदेखी को देखते हुए आयोग ने सचिव शिक्षा को पत्र भेजकर प्रकरण की जांच और आवश्यक कार्यवाही कर उससे आयोग को अवगत कराने के लिए कहा है।
यह पत्र जिलाधिकारी देहरादून को भी भेजा गया है। अकारण सेवा से निकालने जाने के एक अन्य शिक्षिका के मामले में डीएम देहरादून भी हाल में कड़ा रुख अपना चुके हैं। चूंकि स्कूल सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त है तो यह पत्र बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक को भी भेजा गया है। इसके अलावा सोसाइटी एक्ट में पंजीकरण के मद्देनजर पत्र सूचनार्थ सोसाइटी रजिस्ट्रार को भी जारी किया गया। आयोग ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा है कि किसी महिला को अकारण उसकी सेवा से हटाना महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है। लिहाजा, सोसाइटी के शीर्ष प्रबंधन को भी मौजूदा सचिव अनूप सेठ की भूमिका की जांच करनी चाहिए। देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की मुहिम को कुछ पदाधिकारी किस तरह चोट पहुंचा रहे हैं। सोसाइटी प्रबंधन को सचिव अनूप सेठ पर पूर्व में सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए आपराधिक मुकदमे और उनकी तैनाती के बाद के सभी कार्यों की जांच भी करनी चाहिए।
यह भी देखा जाना चाहिए कि गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर देश-विदेश से जो अनुदान प्राप्त किया जा रहा है, धरातल पर वर्तमान में उसकी कितनी पूर्ति की जा रही है। कहीं सरकारी एनओसी और स्वीकृति के नाम पर सिर्फ अनुदान व ग्रांट प्राप्त कर कुछ लोग अपने हित तो पूरे नहीं कर रहे? क्योंकि, नागरिक अधिकार किसी भी संस्था से बड़े होते हैं और कानून के राज में उन्हें इस तरह कुचला नहीं जा सकता।

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