स्थापना दिवस पर छलका राज्य आंदोलनकारी का दर्द
बोले सरकार-पेंशन नहीं भीख दे रही, भूमाफियाओं को करे बाहर
देहरादून। उत्तराखंड राज्य बने 23 साल का वक्त पूरा हो गया है। हालांकि, इन 23 सालों में उत्तराखंड राज्य ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। यही नहीं, जिस अवधारणा के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया था, उसके अनुरूप राज्य सरकारों ने काम जरूर किए, लेकिन अभी तक राज्य गठन की अवधारणाओं को पूरा नहीं किया जा सका है।राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर जहां एक ओर पूरा प्रदेश स्थापना दिवस का जश्न मना रहा है, वहीं, राज्य आंदोलनकारी अभी भी अपने राज्य की परिस्थितियों को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं।
दरअसल, एक अलग पर्वतीय राज्य की मांग को लेकर हजारों की संख्या में राज्य आंदोलनकारियों ने सालों तक संघर्ष किया। जिसमें मातृ शक्ति ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। हालांकि, एक अलग पर्वतीय राज्य की मांग इस वजह से उठी थी कि पहाड़ों से पलायन रुके और युवाओं को रोजगार मिल सके। साथ ही पर्वतीय क्षेत्र का भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास हो सके। लेकिन आज भी 23 साल बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सैकड़ों गांव ऐसे हैं जहां मूलभूत सुविधाएं मौजूद नहीं है। बातचीत करते हुए राज्य आंदोलनकारी मुन्नी खंडूड़ी ने कहा कि एक अलग राज्य बनाने के लिए उन्होंने भूख प्यास, बारिश, धूप की चिंता नहीं की, बल्कि राज्य के लिए डटकर आंदोलन किया। वर्तमान समय में उनको दो बार अटैक पड़ चुका है, लेकिन आज वो शहीद स्मारक में मौजूद हैं। क्योंकि आज भी उन्हें अपने राज्य की चिंता हैं। कहा कि आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर में उनके सामने दो लोगों में दम तोड़ दिया था, जिसका दर्द आज भी उनके सीने में है। साथ ही कहा कि मुजफ्फरनगर में आंदोलन के दौरान पुलिस ने पिता और बेटे की लाठी से जमकर पिटाई की, जिसके चलते दोनों की मौत हो गई थी।
राज्य आंदोलनकारी ने कहा कि प्रदेश में नकली आंदोलनकारी भी है जो गले में पट्टा डालकर फोटो खिंचवा रहे है। वो आंदोलनकारी नहीं बल्कि सिर्फ पेंशन के लालची हैं। लिहाजा, सरकार को चाहिए कि 1994 से उनका लेखा-जोखा लिया जाए, उसके बाद उनको आंदोलनकारी का दर्जा दिया जाए। क्योंकि नकली आंदोलनकारी, एक तरह तो शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर झूठ बोल रहे है कि वो आंदोलनकारी हैं। ऐसे में सरकार को ऐसे आंदोलनकारियों की पहचान करानी चाहिए।










