दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप के बाद अब जमानत पर जेल से बाहर आ गये हैं। भारतीय राजनीति में किसी नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने की यह पहली घटना नहीं है।
यहां राजनेताओं पर हमेशा से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं पर यह अलग बात है कि भ्रष्टाचार कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं बनता। भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में जीप घोटाले से लेकर दिल्ली के शराब घोटाले तक घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। राजनीतिक दल भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते भी हैं पर आम जनता के बीच भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं बन पाता है।
यदि हम भारतीय इतिहास पर पैनी दृष्टि दौड़ाएं तो राजनीतिक दल भ्रष्टाचार और घोटालों को चुनावी मुद्दा बनाते रहे हैं लेकिन 2024 के चुनाव में भ्रष्टाचार और घोटाले जनता के लिए आम मुद्दा नहीं बन सके। आज राजनीतिक पार्टियां भी मानती है कि केवल मुद्दों को लेकर चुनाव जीते नहीं जा सकते।
वर्ष 1977 में नागर वाला और मारुति लाइसेंस को लेकर मुद्दा बना था जिसने लोकसभा चुनाव में अपना प्रभाव दिखाया था । इमरजेंसी और आर्थिक भ्रष्टाचार भी इंदिरा गांधी के पतन का कारण बने । वर्ष 1989 में भ्रष्टाचार ने देश की राजनीति पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा और बोफोर्स कांड को लेकर चंद्रशेखर ने देश का भ्रमण किया। राजीव गांधी से प्रधानमंत्री की कुर्सी छीन ली गई, उसके पश्चात कई राजनीतिक घटनाएं हुई जिससे वोट की राजनीति भी प्रभावित हुई।
1987 में स्वीडन की तोप कंपनी होवित्जर से 155 एम एम तोपों की खरीद में 64 करोड रुपए की घूसखोरी के मामले में राजीव गांधी की काफी आलोचना हुई। 1989 के चुनाव में यह मुद्दा बना और इसके बाद हुए सभी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को घेरने की कोशिश की।
1991 के हवाला कांड ने लालकृष्ण आडवाणी से लेकर एनडी तिवारी और आरिफ मोहम्मद से लेकर शरद यादव तक को कटहरे में खड़ा कर दिया।
चुनाव में यह मुद्दा प्रभावहीन रहा लेकिन नेताओं को इसका व्यक्तिगत खामियाजा भुगतना पड़ा। इस कांड के उजागर होने से कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं के टिकट काट दिए थे। जिनमें कमलनाथ, विद्याचरण शुक्ल और अरविंद नेताम जैसे लोग शामिल थे।
नरसिम्हा राव की सरकार ने घोटालों का नया कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया था। हर्षद मेहता का शेयर घोटाला, झारखंड मुक्ति मोर्चा, सांसद रिश्वत कांड, लखु भाई रिश्वत कांड, यूरिया घोटाला और न जाने क्या-क्या नहीं हुआ। हजारों करोड़ों रुपए के चारा घोटाले के कारण भले ही लालू यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडऩी पड़ी लेकिन यह मुद्दा बिहार और झारखंड तक ही सीमित रहा।
(सुभाष आनंद- विनायक फीचर्स)