हर वर्ष मानसूनी सीजन में जलमग्न हो जाते हैं घाट
रुद्रप्रयाग। मानसूनी सीजन को निपटे हुये तीन माह का समय हो गया है, लेकिन रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी किनारे स्थित पर्यटक एवं स्नान घाटों से अभी तक मलबा साफ नहीं हो पाया है। जिस कारण इन घाटों की ओर कोई रूख नहीं कर रहा है। करोड़ों की लागत से बने घाट मलबे में ढ़के हुये हैं। पर्यटक तो दूर स्थानीय लोग भी इन घाटों की ओर नहीं जा रहे हैं।
विगत छह वर्ष पूर्व नमामि गंगे योजना के तहत अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे स्नान घाटों का करोड़ों रूपये की लागत से निर्माण किया गया। घाट निर्माण का मुख्य उददेश्य था कि पर्यटक व स्थानीय लोग घाट किनारे आये। गंगा स्नान करने के साथ ही गंगा जल भरे, लेकिन जब से यह घाट बने हैं, तब से इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। मानसूनी सीजन में यह घाट जलमग्न रहते हैं और अन्य महीनों में इन घाटों में मलबा जमा रहता है। घाट किनारे लगाई गई स्ट्रीट लाइटें भी पूर्ण रूप से खराब हो चुकी हैं। जबकि शौचालय भी मलबे में दबकर खण्डर बन चुके हैं। पिछले वर्षों में मानसूीन सीजन समाप्त होने और नदी का जलस्तर कम होने पर घाटों की सफाई की जाती थी, लेकिन इस बार तीन माह का समय गुजर चुका है, लेकिन घाट अभी तक साफ नहीं हो पाये हैं। जिस कारण पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोगों को इन घाटों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालांकि इतना जरूर है कि नेपाली मजदूर इन घाटों से रेत-कंक्रीट एकत्रित कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं और सरकार के राजस्व को प्रभावित कर रहे हैं। मलबे में दबे यह घाट नदियों की सुंदरता को भी प्रभावित कर रहे हैं। नदियां इन घाटों के आस-पास एक ही ऊंचाई पर बह रही हैं।
नगरपालिका सभासद सुरेन्द्र सिंह रावत का कहना है कि नमामि गंगे परियोजना से जुड़े हुये अधिकारी-कर्मचारियों को पूर्व में ही अवगत करवा दिया गया है। घाटों की सफाई का जिम्मा उन्ही का है। यदि नगरपालिका को घाटों की सफाई का जिम्मा दिया जाता तो पालिका के साथ ही प्रशासन का राजस्व भी बढ़ता। उन्होंने कहा कि घाटों की सफाई होनी आवश्यक है। घाटों की सफाई न होने से आगामी मानसूनी सीजन में दिक्कतें हो सकती हैं।










