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अंगदान बचाता है लोगों की जान: नारंग

ऋषिकेश। अंगदान न केवल लोगों की जान बचाता है बल्कि जीवन को भी एक नया अर्थ देता है। इस अनमोल कार्य की शुरुआत 23 दिसंबर 1954 को रोनाल्ड ली ने अपने भाई रिचर्ड को एक गुर्दा दान करके की थी। इसी उपलक्ष्य में अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 13 अगस्त 1955 से विश्व अंगदान जागरूकता दिवस मनाया जाने लगा।

लायंस क्लब ऋषिकेश देवभूमि के चार्टर अध्यक्ष गोपाल नारंग ने बताया कि इस वर्ष विश्व अंगदान की थीम “आज हम किसी की मुस्कान का कारण बनें” है। यदि हम स्वस्थ हैं, तो हम जीते-जी एक किडनी, एक लीवर का हिस्सा, पैंक्रियाज का हिस्सा और फेफड़े का एक ऊपरी खंड दान कर सकते हैं। मस्तिष्क मृत्यु के बाद हम नेत्रों के साथ-साथ दोनों गुर्दे, दोनों हाथ, पूरा लीवर, फेफड़े, छोटी आंत, पैंक्रियाज, त्वचा, और दिल का दान कर सकते हैं। प्राकृतिक मृत्यु में केवल नेत्रदान कर आँखें बचाई जा सकती हैं।

अंगदान की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। एम्स दिल्ली के एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रतिवर्ष 1.5 लाख गुर्दों की आवश्यकता होती है, जिसमें मात्र 4% ही चिरायु दान में आते हैं। यदि आप जीवन में अपनी प्राकृतिक मृत्यु से पहले किसी की खुशी का कारण बनना चाहते हैं, तो अपनी आँख का कॉर्निया, हार्ट, लीवर, और किडनी के लिए सहमति देकर दूसरों की जान बचा सकते हैं।

उत्तराखंड में अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मोहन फाउंडेशन कार्यरत है। इसके प्रोजेक्ट लीडर संचित अरोड़ा के सहयोग से क्लब ने 1200 से अधिक लोगों को इस अभियान की जानकारी दी है। आइए, हम सब मिलकर इस पुनीत कार्य में सहभागी बनें और दूसरों के जीवन में आशा की एक नई किरण लाएँ।

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